माँ-बाप को बेचतें और बेटियों से मैंने यहाँ हर रोज खेलते देखा है मैंने अपने ही लोगों को यहाँ, जिन्दा लाश बनते देखा है | बेव़जह ही मैंने यहाँ, लोगों को अक्सर झगड़ते देखा है मैंने अब इसी नई पहचान से, भारत को आगे बढ़ते देखा है | शरहद पर कितने ही सैनिको को हर रोज शहीद होते देखा है जव़ानी में ही ना जाने कितनो को विधवा होते देखा है | चंद पैसो के लिये मैंने लोगों को सामने बिकते देखा है गरिबी के खातिर यहाँ तक की आत्महत्या भी करते देखा है | हर रोज सबको यहाँ एक नया झूठ बोलते देखा है सच्चाई को अब यहाँ से "अक्षि" कही दूर जाते देखा है | सोने की चिड़ीया कहलाने वाला यह भारत आज उसी चिड़ीया को बंद पिंजरे में कैद देखा है | by:-akshita jangid (poetess) True Incident #nojoto#shamful#poem #india#true-incident#tst#nojotohindi #kavishala