आ जश्न कर है आज दिन तसकीन का इंसाफ़ का दसतूर का आईन का पैरों तले खिसकी तिरे है क्यों ज़मीं दिल्ली के सर पर ताज है शाहीन का? रज़िया यहीं है लक्ष्मी बाई यहीं तारीख़ पढ़ ले तू कभी ख़्वातीन का जमहूरियत में तानाशाही छोड़ दे अब हुक्म चलने का नहीं दो-तीन का पोशाक पर अब नाम गुदवाने से क़ब्ल कुछ ले ख़बर बे-पैरहन मिसकीन का बस नफ़रतों के बीज कुर्सी के लिये? तुम कर रहे हो जुर्म ये संगीन का Kashif Ahsan #Repulic Day