जिंदगी के घाव और भी गहरे हो जाते हैं गैर चाहे कितना भी मरहम क्यो ना लगाये अपनो के खंजर का जख़्म चाह कर भी ना भर पाते हैं #अपना कब हो जाए पराया ये कोई समझ ना पाया#$