हम दो किनारे थे जिनका मिल पाना मुमकिन ना था पर मिलने की ज़िद में हमने नदी ही सुखाने की कोशिश की थी हमने देखा कई कश्तियाँ मझधार में थीं हमने कश्तियों को किनारे तक लगने दिया नदी बहती रही मैं देखता रहा कोई एक कश्ती उस किनारे तक पहुँची तो थी पर ठहरी नहीं उस किनारे का दायरा बढ़ता गया और वो किनारा कश्ती में ही सिमटता गया वो मेरी आँखों से ओझल हो गयी वो नदी आज भी बहती है पर मेरी आँखों का दूसरा किनारा अब कोई भी नहीं...... #दूसरा_किनारा📙