जीवन में बहुत कुछ.. दो बिंदुओं की परिधि में ही सिमट कर रह जाता है और अधिकतर.. अनुत्तरित और अनिच्छा की भेंट चढ़ जाता है। तितलियों का रूप.. वरदान और शाप के मध्य अभिशापित रहा। वैसे ही जैसे, प्रेम.. होने और रहने के बीच रहा..'शापग्रस्त'। झूठ.. सत्य और विवेक के मध्य शाश्वत रहा। वैसे ही जैसे, उम्मीद.. इच्छा और विश्वास के मध्य साँसें गिनती रही। कविताएँ भी, यथार्थ और परिकल्पनाओं के मध्य अपना अस्तित्व, खोजती रहीं..। वैसे ही जैसे, मैं.. सोचने और लिखने के बीच जीवित रही। अधिकांशतः .. हाशिए तक पहुँच ही नहीं पाया। न सुंदरता, न कविताएँ और न ही झूठ..! मध्य की स्थिति ने मध्य में ही दम तोड़ दिया..।। # बिंदुओं के मध्य.. जीवन में बहुत कुछ.. दो बिंदुओं की परिधि में ही सिमटकर रह जाता है और अधिकतर.. अनुत्तरित और अनिच्छा की भेंट चढ़ जाता है।