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मेरा वक्त कैसा भी हो गुजर जायेगा इक दिन हर किसी नज

मेरा वक्त कैसा भी हो गुजर जायेगा
इक दिन हर किसी नज़रो से उतर जायेगा।

मुसाफ़िर हूँ कोई न कोई रास्ता निकाल जाऊंगा 
बिना बात के ही सही सहज मंज़िल तक पहुँच जाऊंगा।

तुम साथ छोड़कर चले गयें तो क्या हुआ 
थोड़ा सा दर्द और थोड़ी-बहुत अरमान ही बिखरे हैं
बाकी सब मेरे संग पांव तक उतर आये हैं।

जो वक्त गुजारा न जाये वो वक्त भी हमने गुजारी है
तुम कहते हो बंदा मुसाफ़िर है बस चलता चला जायेगा।

©Deepak Kumar
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