*मुक्तक* *सरल सरिता बहे जैसे* *बहे है भाव की धारा* *खिले उपवन मधुर जैसे* *बने फिर गीत एक न्यारा* *कभी कविता बने मधुरिम* *कभी चातक लगे प्यासी* *ढले जो धड़कनों में तो* *सृजन संसार हो न्यारा* ✍🏻 रागिनी स्वर्णकार (शर्मा ) इंदौर