चुप-चुप सब मैं सुनती थी,माँ के पेट के भीतर से,दादी हरदम क्यों कहती थी,बेटा’ दे अब ‘बेटा’ दे,,बहन मेरी प्यारी सी,एक छोटी बहन मुझे देना माँ,एक जोर का चाँटा उसे जड़ देती माँ,और रो-रो कर, ये कहती थी…माँग तू एक भाई अब,बेटी का जीवन कठिन बहुत,दादी भी बेटा माँगे,माँ भी अब भगवान् से अपने,फिर भी मैंने सोच लिया,सबका मन मैं हर लूँगी,मैं अपनी नटखट बातों से,सब को खुश कर दूंगी,पर मुझको इतना वक्त ना दिया,मेरे बाप ने ऐसा पाप किया,मालूम कर कि मैं लड़की थी,मुझको पेट में ही मार दिया,मैं फूलों की खुशबू न ले सकी,माँ को मैं “माँ” भी न कह सकी,क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?फिर मौत की आग में झोंक दिया,बेटी बन क्या मैंने कोई पाप किया ???क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?? ©mau jha Emotional Poem on Female Infanticide