हर गरदीले अटपटे रंगों में खुलती नज़र साफ़ पर जो दांगी है
ज़िंदगी क्या है तुझे बड़ी कमज़र बनाती जो खाती हैं
थोड़ा सा थम जा थोड़ा थाम कर चल जो भगाती ही जाती हैं
हाफ लू तू भी दम भर मोहलत दे ज़रा एक पल में ओझल हो जाती हैं
जज़्बात ए हर्षिता
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