जीव हत्या महापाप है। मांस खाने वाला महानरक का भागी बनता है। कबीर, जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय। निगम पुनि ऐसे पाप तें भिस्त गया नहिं कोय।।भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से कमाया गया पैसा स्वयं का तथा परिवार का नाश कर देता है। पर धन को विष समान समझें। किसी को गाली या अपशब्द नहीं बोलने चाहिए। कबीर, आवत गाली एक है, उलटत होय अनेक । कहै कबीर नहिं उलटिये, रहै एक की एक ।।