"माँ सुनो न मैं जल्दी वापस आ जाऊँगी आप परेशान मत होना पापा - मैं अब बड़ी हो गई हूँ अपना ध्यान रख सकती हूँ।" शायद कुछ यही अल्फ़ाज बोल कर निकली होगी वो घर से उस रात पर उसे क्या पता था कि वो उस रात घर से निकल रही है फिर वापस कभी न आने के लिए । उसे क्या पता था कि वो एक लड़की है । हाँ वो एक लड़की है , हाँ वो वही द्रोपदी है जिसका हरण करने के लिए हर मोड़ पे हर तिराहे पे दुर्योधन बैठा होता है । वो हर बार की तरह चीखती है , चिल्लाती है , रोती है लेकिन वो भूल जाती है ये कलयुग है यहाँ कृष्ण कहाँ से आएंगे। और फिर हरबार की तरह इसबार भी दोष तो उसी का होगा क्योंकि वो लड़की है , "अरे भई!! जरूरत ही क्या थी घर से बाहर जाने की वो भी रात में । हैं ना उसने कपड़े नई पहने होंगे न ढंग से।। " यही बाते होगी न इस बार भी फिर सब शांत हो जाएगा और फिर से एक द्रोपदी जिंदा जला दी जाएगी । फिर राजनीति होगी, फिर यही दोहराया जाएगा लेकिन हमें इंसाफ कब मिलेगा ?? हम यहाँ महफूज़ कब रहेंगे ?? कोई तो सुनो कोई तो समझो कोई तो कुछ करो । हाँ हमे बचा लो न उन दरिंदो से । ये तो अब रोज का किस्सा हो गया है ना, आदत सी हो गई है ऐसी खबरों को सुनना और पढ़ना।।।।।।। कब वो दिन आएगा जब हम महफूज़ होंगे और रक्षा बंधन नही, प्यार का बंधन अपने भाई की कलाई पर बांधेंगे।।।। - वैष्णवी पांडेय।। # save me