बस्ता भाड़ी हुआ जा रहा विषयों के विस्तार से, किताबों के बोझ तले, कंधा झुकता जा रहा, पर विद्यालय आज भी वही है शिक्षक गण भी वहीं हैं; बस उनका मनोबल टूटता जा रहा, क्यूंकि विद्या का भाव बदल गया है; शिक्षक अब दुकानदार और शिक्षार्थी ग्राहक कहलाता है; शिक्षार्थियों की उपलब्धि पर घरवाले उसे धरोहर मानते हैं; पर हर नाकामयाबी की वजह शिक्षालय को ठहराते हैं; प्रतिस्पर्धाओं की होड़ लगी है, ऊंचाइयों पर सभी को चढ़ना है, पर सब के लिए अलग से कानून हैं, हर वर्ग की अलग सी पहचान है; कोई श्रम से तो कोई अर्जित धन से जीवन के हर जंग से जूझ रहा है; पर एक वर्ग अब भी ऐसा है जो सब बैठे बिठाए चाहता है, बिन मेहनत के सब पाना चाहता है, बिन पसीना बहाए, सूरज को छूना चाहता है, चांदी की कटोरी में, सोने की चमच से सब घोल के पी जाना चाहता है, गुरु भी और उसका ज्ञान भी, रिश्ते भी और उनका मान भी! ©अनुपम मिश्र #sunrays #Education #शिक्षा #विद्या #School #moderneducation