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माँ तो माँ है माँ तो माँ है माँ सा कौन हर दुख सहत

माँ तो माँ है

माँ तो माँ है माँ सा कौन
हर दुख सहती रहकर मौन
जिसकी आशाओं का दीपक मुझमें ही अब जलता है
जिसकी आंखों का हर सपना मेरी आंख में पलता है
नहीं पूजता मंदिर मस्जिद न टेकूं गुरुद्वारे को
कदमों में बस झुक जाता हूं जब भी निकलूं द्वारे को
न मैं पढ़ता रामायण न सीखा है गीता का सार
माँ  की आंखों से दुनिया को पढ़ लेता हूं बारम्बार
उसके आंचल में बसते हैं दुनिया के ये चारों धाम
माँ तो माँ है माँ सा कौन हर दुख सहती रहकर मौन
जिसके कारण दृग खोले इस दुनिया में मैं आया हूं
जिसके आंचल ने सींचा तब दो पग चलने पाया हूं
उस जननी के त्यागों का कैसे मैं मोल चुकाऊंगा
उसका हो अपमान अगर तो जीते जी मर जाऊंगा
न मैं फेरूं मनका मनका न जपता मैं प्रभु का नाम
मैं तो बस रटता रहता हूं अपनी मां का प्यारा नाम
माँ रोये तो इस जग में फिर बोलो सुखी रहा है कौन
माँ तो माँ है माँ सा कौन हर दुख सहती रहकर मौन
                        ~ मनोज कुमार "मंजू"
                            मैनपुरी, उत्तर प्रदेश #manojkumarmanju
#manju
#hindipoems
माँ तो माँ है

माँ तो माँ है माँ सा कौन
हर दुख सहती रहकर मौन
जिसकी आशाओं का दीपक मुझमें ही अब जलता है
जिसकी आंखों का हर सपना मेरी आंख में पलता है
नहीं पूजता मंदिर मस्जिद न टेकूं गुरुद्वारे को
कदमों में बस झुक जाता हूं जब भी निकलूं द्वारे को
न मैं पढ़ता रामायण न सीखा है गीता का सार
माँ  की आंखों से दुनिया को पढ़ लेता हूं बारम्बार
उसके आंचल में बसते हैं दुनिया के ये चारों धाम
माँ तो माँ है माँ सा कौन हर दुख सहती रहकर मौन
जिसके कारण दृग खोले इस दुनिया में मैं आया हूं
जिसके आंचल ने सींचा तब दो पग चलने पाया हूं
उस जननी के त्यागों का कैसे मैं मोल चुकाऊंगा
उसका हो अपमान अगर तो जीते जी मर जाऊंगा
न मैं फेरूं मनका मनका न जपता मैं प्रभु का नाम
मैं तो बस रटता रहता हूं अपनी मां का प्यारा नाम
माँ रोये तो इस जग में फिर बोलो सुखी रहा है कौन
माँ तो माँ है माँ सा कौन हर दुख सहती रहकर मौन
                        ~ मनोज कुमार "मंजू"
                            मैनपुरी, उत्तर प्रदेश #manojkumarmanju
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