।। ख्वाहिशें आदतें बदल रही हैं ये ज़िन्दगी यू ही गुजर रही है। वो एक शाम हुआ करती थी एक आवाज़ आया करती थी हम भी घर से निकलते दर ए दौलत कदे की अोर चलते सुकून ए दिल लिया करते ना जाने ये फिर क्या दौर आया सूनी रह गई हैं गलियां इस बार भी ना कोई आया है या ख्वाजा हसन सरकार हम सबकी ज़िन्दगी रहे सलामत आपने हमेशा मुसीबतों से बचाया है। रस्मे चारागा नहीं तो क्या हुआ बेशक अल्लाह ने आपका दर रहमतों से जगमगाया है।। ©Shøäíb Mälïk चाराग