दिए तो सदियों से जलाए हैं हमने, पर अंधेरा आज भी है। प्रेम की बात कहते रहे सबसे, पर मन में घृणा आज भी है। इरादे मज़बूत ही सही, पर नापाक आज भी है। रोज़ कहता हूँ कि तुम मेरे हो, पर हाथों में ख़ंजर आज भी है। संग तुम्हारे मैं सदियों से सही, पर मन असंग आज भी है। पूज तो रहे सब तुझे सदियों से, पर ज़ेहन में तुझ पर सवाल आज भी है। चलने के तरीक़े ही तो बदलें हैं, मनुज जैसा था वैसा ही तो आज भी है। ...गौतम #diye #andhera