खुद बा खुद ठहर जाते कदम तुम्हारे जो पलटकर देख लेते तुम, पल भर ही सही आंखों में भर लेते तुम्हें जो पलटकर देख लेते तुम। कुछ पल जो उधार थे लौटा दिए होते इस खुशनुमा सफर के वास्ते, अश्क जो ढोलक आए थे ब्याज था बस पलटकर देख लेते तुम। दिन बैरी रातें पागल इक तुम्हारे बिना रह रह कर हूंक सी उठती है, उर में है मलाल इतना कि जाते जाते जरा पलटकर देख लेते तुम। नाम चस्पा जो घर की दर ओ दीवार पर जाने क्यूं बेतहाशा चिढ़ाता है, दरख़्तों को है शिकायत उकेरा था तो कभी पलटकर देख लेते तुम। जहरीली सी लगी हवा वही मधुमास की और बेरंग उपवन बहार का, शायद होती तरुणाई दरिया की भी धार में गर पलटकर देख लेते तुम। अब तो बिखर से गए हैं सारे कागज इस बेरंगत जिंदगी की किताब के, हां बाकी होता इक रंग सकूं नी शायद इक बार पलटकर जो देख लेते तुम। राजेश गुप्ता'बादल'मुरैना मध्यप्रदेश #जज्बाज #शायद #पलटकर #देखा_होता #इंतजार #दर्द_ए_दिल