कभी-कभी मैं सोचता हूं कि अगर मैं लेखक ना होता तो क्या होता। क्या मुझे वह सब लोग मिलते हैं जो आज मेरे बेहद करीब है। कभी-कभी कभी-कभी मैं इस विडंबना में पड़ जाता हूं। कि जो मेरे साथ हैं वह मेरे लेखन की वजह से मेरे साथ है , या मेरे प्रेम की वजह से। अगर वह मेरे लेखन की वजह से मेरे साथ हैं तो यह उनको प्रेम नहीं हो सकता। और अगर वह मेरे प्रेम की वजह से मेरे साथ हैं तो उन्हें मेरे लेखन से कोई मतलब ही ना होगा। और मैं चाहता हूं कि जो मेरे साथ हैं वो सिर्फ मेरे प्रेम की वजह से मेरे साथ हो। क्योंकि लेखक तो बहुत हैं। मुझसे काफी अच्छे अच्छे लेखक हैं। जिनके सामने मैं समुंदर की एक बूंद के बराबर भी नहीं। अगर वह लेखन की वजह से मेरे साथ है तो मुझे छोड़ कर अवश्य जाएंगे ।और अगर वह प्रेम की वजह से मेरे साथ हैं तो उनके कहीं जाने का सवाल ही नहीं। आशुतोष भारद्वाज मैं क्या होता???