स्याह रातों से अब बंदगी होने लगी है, लब ख़ामोश है फिर भी गुफ़्तगू होने लगी है। आईनें में देख लिया जबसें चेहरा उसका, लगा जेठ की दोपहरी में बाद-ए-सबा बहने लगी है। दिल तो आज़ाद है लेकिन धड़कन तेरी मुट्ठी में क़ैद है, रूह अब बदन छोड़ कर जाने को कहने लगी है। जबसें बरसी है तेरी इनायत अब्र बनकर मुझपे, दुनिया तबसे तुम्हें मोहब्बत का देवता कहने लगी है। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार...📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-13 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6-8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा। 💫 प्रतियोगिता ¥13:- गुफ़्तगू होने लगी है