होली मनायें भूलकर गिले शिकवे सारे चलो आज होली मनायें जो है , बैठा रुठ कर ; उसके घर भी ; जायें आयें हर इक को ; बेपनाह रंगकर ; हम आज क्यों रहे बैठे हाथ पर हाथ धरे आओ झूमे नाचे गायें कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद होली मनाये.......कीर्तिप्रद