यूं ही नहीं किसी का मुकद्दर बदलता है। हर मुसाफिर को उसका बसेरा यूं ,ही नहीं मिलती।। खुद को तपती हुई आग में जलाना पड़ता है। और अपनी मंजिल को पाने के लिए, लोग क्या कहेंगे इस सोच को भी दफनाना पड़ता है।। और यूं ही नहीं कोई बेदाग मुकद्दर सिकंदर बनता है। कभी-कभी बिना कुछ खाए ही , पुरा दिन गुजारना पड़ता है।। और इस खेल में जीत हिस्सा है जिंदगी का। असल मकसत तो जिंदगी का अर्थ सिखाना है।। -Shruti P Jain ©Shruti.P.jain #behind success of every successful person their is always a struggling past