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ना मानी थी हर तब और न ही मानूंगा आज, और न ही कल, क

ना मानी थी हर तब
और न ही मानूंगा आज,
और न ही कल,
करता चलता हूं अपना कर्म,
देखा न कभी सोचा कैसा होगा फ़ल,
हां सपने ज़रूर हैं,
और उनको पूरा करना मेरा कर्तव्य,
बाकी जो ईश्वर देगा,
करूंगा और करता आया हूं उसे 
खुले दिल से स्वीकार,
फिर चाहे वो हो कोई आशीर्वाद,
या कोई दंड किया जो मैने कोई पाप।।
मैं और मेरी कला कर उसको समर्पित,
अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाऊंगा।।

©Akhil Kael lost in divine
ना मानी थी हर तब
और न ही मानूंगा आज,
और न ही कल,
करता चलता हूं अपना कर्म,
देखा न कभी सोचा कैसा होगा फ़ल,
हां सपने ज़रूर हैं,
और उनको पूरा करना मेरा कर्तव्य,
बाकी जो ईश्वर देगा,
करूंगा और करता आया हूं उसे 
खुले दिल से स्वीकार,
फिर चाहे वो हो कोई आशीर्वाद,
या कोई दंड किया जो मैने कोई पाप।।
मैं और मेरी कला कर उसको समर्पित,
अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाऊंगा।।

©Akhil Kael lost in divine
akhilkael0764

Akhil Kael

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