दाम्पत्य भाव जीवन का सबसे बड़ा क्लास रूम है। सबसे बड़ा परीक्षा केन्द्र है। ईश्वर कुछ भी देने से पूर्व पात्रता की परीक्षा लेता ही रहता है। घर बसाने और चलाने के लिए कैसे कैसे पापड़ नहीं बेलने पड़ते। पति-पत्नी दोनों प्रात: जल्दी उठकर काम में लग जाते हैं। गृहस्थ जीवन को शारीरिक दृष्टि से मौज-मस्ती और भौतिक सुखों की चकाचौंध भी कहा जा सकता है। व्यक्ति का कर्ताभाव परिवार को नरक बना देगा। इसी को आध्यात्मिक दृष्टि से ईश्वर का प्रसाद मानकर सिर-आंखों पर रखकर जिया जा सकता है। इसी देह के माध्यम से व्यक्ति 84 लाख योनियों के बन्धन-आवरण काटता है। क्षर-अक्षर पुरूष की साधना करके अपने अव्यय पुरूष रूप कृष्ण से साक्षात्कार कर सकता है। : क्रमसः