मुहब्बत की बारिशों की ख़्वाहिश लिए है नादाँ शायद सनम मुहब्बत की बाढ़ से वाकिफ़ नहीं है कहानियाँ पढ़ - पढ़कर बेचैन हुआ जाता है यूँ जो शायद भीड़ में गुमनामियों से वाकिफ़ नहीं है चाहता है कमबख्त इक नाम अपना भी हो कहीं बेचारा ज़माने की बदनामियों से वाकिफ़ नहीं है मशगूल है उसके ख़यालों में दिन रात ही नाहक क्या तू ज़रा भी इन वीरानियों से वाकिफ़ नहीं है ये बस ख़याल भर अच्छा है के सब कुछ अच्छा हो अभी मुसाफ़िर सफ़र की तन्हाईयों से वाकिफ़ नहीं है ©technocrat_sanam उधर nii to.. इधर pdh lo.. 🤗 वाकिफ़ नहीं... मुहब्बत की बारिशों की ख़्वाहिश लिए है नादाँ शायद सनम मुहब्बत की बाढ़ से वाकिफ़ नहीं है कहानियाँ पढ़ - पढ़कर बेचैन हुआ जाता है यूँ