ज़िक्र, फ़िक्र, तलाश हमने सब छोर दिया,
हमने गैरों को याद करना कबका ना छोर दिया,
उसने जो बनाया था रिश्ता किस्तों पे,
हमने किस्तों के रिस्तो को कबका ना छोर दिया।
बचा ना कोई जिससे अपना कह सकूं
रिश्ते सब बस नाम के थे,
पक्के ना कोई जुबान के थे,
रिश्तों मे तलबगार की कमी ना थी, #Quotes