ना तू मिलता है और ना ये सुकून मिलता है पता नही कब मगर यह वक़्त चुपचाप हर पल निकलता है दूर से देखती हुई उन ऐश ए अमीर नजरो में कुछ खोया सा अधूरा नसीब दिखता है खरीद लाता बाजार ए वक़्त से तेरा अच्छा वक्त में पर यहा वक़्त नही जिस्म ए ईमान बिकता है मिलता है