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आज सड़क के किनारे एक कुत्ते के बच्चे को देखा; हादस

आज सड़क के किनारे एक कुत्ते के बच्चे को देखा; हादसे में मौत हो गई। वह अपने भाइयों और बहनों से घिरा हुआ है। वे शरीर को घसीट रहे हैं और फाड़ कर खा रहे हैं। उनकी कंकलसार माँ थोड़ी दूर खड़ी सब कुछ चुपचाप देख रही है। क्या करेंगी ये असहाय माँ? वे प्रथम श्रेणी के पालतू कुत्ते नहीं हैं जिनके पास 'पेडिग्री', 'ड्रोल' या 'प्योरपेट' हैं। वे दूसरी श्रेणी के पालतू कुत्ते नहीं हैं, जिन्हें 'लेरो', 'ब्रेड' या 'मालिक के बचे हुए' पर खिलाया जाता है। ये गली के कुत्ते हैं। एक मर चुका है, बाकी को जीना होगा; मांस चाहे किसी अपने का ही क्यों न हो।

दृश्य करुण और क्रूर लग रहा है? अपने आसपास देखिये, इंसान भी ऐसा हि एक प्राणी है। एक वर्ग के हाथ में अशेष पूंजी; कैसे खर्च करेंगे समझ में नहीं आता।दूसरा वर्ग दिन का रोज़गार करता है, उसी से एक दिन का खाना खाता है। और बाकी? ये आवारा कुत्तों की तरह अस्तित्व के लिए लड़ते हैं।

ये सिर्फ आज का दृश्य नही है। पीछे मुड़कर देखने पर यह छवि ही मिलति है। समय बदला है, वैश्वीकरण हुआ है; तस्वीर नहीं बदली है।

©Arghyakamal Das
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