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सिलसिला ये बातों का, भेट ठंड की चढ़ गया, कुहासों

सिलसिला ये बातों का, 
भेट ठंड की चढ़ गया,

कुहासों मे दिखे नही,
साया भी जम गया,

वो धूप छलावा निकला,
ऋतुओं को जकड़ा है,

बोले क्या शब्द अपने,
वहां शबनम का पहरा है,

मुमकिन एक उम्मीद जताई,

दो प्याले पास रखे,
पिघले अल्फाज़, जो ज़ुबान से टकराई,

मेरे शहर की चाय,
कुछ यूं  रंग लाई,

कहानियों में लिखीं,  हजारों की फर्माइश ।।

©Vishal Pandey
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