बिखरा हुआ सा मन, क्षितिज पर है पड़ा स्तब्ध, जैसे हो गया हो इसका बध, उलझ पड़ी है ज़िन्दगी, सुकून की चाह में है मन। समुन्द्र की जलधारा की तरह, बिचारो का ज्वार-भाटा उपजाकर, उच्च आवेग में बह रहा है मन, कभी श्रृंग के उफान तो कभी गर्त की खाई, के बीच कम्पन कर रहा है मन। फर्श पर बिखरे पड़े है सारे अरमान, शून्य में भटका सा हुआ है मन, इस बेरँग पड़े मौसम को, रंगों से भरने की चाह में, वेदना से तड़पा जा रहा है मन। कभी अंगारो पर चलने को तैयार था, अब तो शिथिल पड़ चूका है मन, ज़िन्दगी के अध-भरे चौखट पर, अपने बिखरे वजूद को समेटने के लिए, सही वक्त के आस में नि:सत्व सा पड़ा है मन । @आशुतोष यादव #दिल_की_बात #दिल_की_डायरी_से_ #दिल_की_आवाज #तन्हा_परिंदा #mentalHealth Kavi Shyam Pratap Singh Sudha Tripathi