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हे अर्जुन! इस कर्म योग में निश्चयात्मिका बुद्धि ए

 हे अर्जुन! इस कर्म योग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है किंतु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनंत होती हैं।
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श्रीमद्भागवत गीता अध्याय २/४१ #गीताज्ञान
अटल और स्थिर निश्चय ही जिस बुद्धि का स्वरूप है, वही ठीक है।
 हे अर्जुन! इस कर्म योग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है किंतु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनंत होती हैं।
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श्रीमद्भागवत गीता अध्याय २/४१ #गीताज्ञान
अटल और स्थिर निश्चय ही जिस बुद्धि का स्वरूप है, वही ठीक है।

#गीताज्ञान अटल और स्थिर निश्चय ही जिस बुद्धि का स्वरूप है, वही ठीक है।