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तुम वो ग़ज़ल हो जिसे मैं पढ़कर मुस्कुराता हूँ, जमीं

 तुम वो ग़ज़ल हो जिसे मैं पढ़कर मुस्कुराता हूँ,
जमीं से आसमाँ तलक तेरे नाम को रौशन चाहता हूँ..!

बना कर रखा है जिसे ईश्वर का रूप मैंने,
खो कर तुझमें ख़ुद को कुछ यूँ पाता हूँ..!

कभी बेचैन होता हूँ जब मैं तुम्हारे ख़्वाबों में खो जाता हूँ,
सुख का सागर तुमसे पाकर ग़म को भुलाता हूँ..!

कब लग जाती हैं आँख न जाने कब सो जाता हूँ,
ख़ुद का नहीं रहता मैं फिर तुम्हारा यूँ हो जाता हूँ..!

बदनाम शायर से मशहूर लेखक कहलाता हूँ,
लिखता हूँ जब भी तुम्हें मैं पन्नों को सहलाता हूँ..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #akela #ghazal