पल्लव की डायरी चाँद जब से उगने लगे,दिल के मरीज बढ़ने लगे है सितारों से गगन सजने लगे है चाँदनी के सौंदर्य में चेहरों पर नूर खिलने लगे है रात्रि के आगोश में परवाने मिलने लगे है ओठो पर ठहर गयी सब हसरते दिल की धड़कनों में प्यार की लहरे मचलने लगी है ना उधर से कोई शब्द ना ईधर बात रात्रि के पहर निशब्द हो चले है खामोशी में भी एक दूसरे के जज्बात समझने लगे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" रात्रि के पहर निशब्द हो चले है