एक लडकी की अवाज़ आई , वही लडकी जो रेलवे स्टेशन पर मिल्ती थी... **सपनें या प्रथा** वो दिल्ली की मेट्रो और हर सुहानी शाम एक छोटी सी लड़की और उसकी सपनों की दुकान जेब था खाली पर मन में ऊंचा उड़ने की चाह हां हुई मेरी मुलाकात उससे , चाहत था उसका नाम मै हर रोज़ शाम को अपने कोचिंग से वापिस आती थी तो देखती कि चाहत उसी स्टेशन से चढ़ती थी और फिर दूसरे स्टेशन पर उतर जाती थी।एक दिन मैंने उसे अपने पास बुलाया और पूछा कि क्या करती हो यहां तो फिर उसने कहा मैं जहां रहती हूं वहां इतने पढ़े लिखे लोग नहीं रहते तो मैं हमेशा यहां आकर बैठती हूं और ये देखती हूं कि आप पढ़े लिखे लोग कैसे बैठते हैं , कैसे बातें करते हैं।फिर मैंने पूछा कि अपनी ज़िन्दगी में क्या करना चाहती हो,उसने कहा मेरे टोले में कोई डॉक्टर नहीं है तो मै डॉक्टर बनना चाहती हूं । पर कहते हैं ना की समाज सपनों से ज्यादा प्रथाओं को मान्यता देते हैं । एक लड़की पढ़ नहीं सकती और उसका बाल विवाह करवा देते है।जब 10 सालों बाद मैं फिर से उसी स्टेशन पर चाहत से मिली तो ऐसा ही हुआ था चाहत के साथ।16 की उम्र में चाहत मां बनने वाली थी और फिर उसके परिवार में बेटा न होने के कारण उसे घर से निकाल दिया।फिर उसके खुद के घरवालों ने घर में रहने ना दिया।फिर भी चाहत की चाहतें कम नहीं हुई और उसने घर घर काम करके अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और अपनी बेटी को भी एक अच्छी शिक्षा दी।अब वो अपने टोले के लोगों का फ्री में इलाज करती है। ©shristi dubey #phonecall #short_Story #nojoto_short_story #nojoto_2022