बात उन दिनों की है जब दसवीं के आखिरी दिन थे,
उस दिन हमारी छुट्टी हुई और मैं जल्दी से बस में जाकर अपनी मनपसंद खिड़की वाली सीट पर बैठ गया। बस चल पड़ी और आगे रास्ते में आर्मी स्कूल पड़ता था, तो वहां बस रुकी बच्चो को बैठाने को।
अरे! मैं बताना भूल गया, पिताजी फ़ौज में थे तो हम केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ते थे।
उस दिन काफी देर लग रही थी उन्हें आने में तो मैं बस से उतर गया युहीं घूमने के लिए।
एकदम से मेरी नज़र उसपर पड़ी, हाँ! वही जिसके बारे में ये किस्सा है, तो हुआ कुछ यूँ की मुझे उसका चेहरा कुछ करीब से देखना था, मैं उसकी तरफ चल पड़ा, और जब करीब से देखा बस देखता ही रह गया।