ग़ज़ल आग दिल में लगाते गये, दर्द को फिर जगाते गये। जख़्म देकर मुझे बेकदर, घर किसी का सजाते गये। प्यार में खुद ख़ता कर मुझे बेवजह फिर सज़ा दे गये। दर्द दिल में भरा इस कदर, हर पहर गम बहाते गये। ख़्वाब में रोज आये मगर, घर कहाँ कब बुलाये गये। प्यार की महफ़िलो में सदा तोड़कर दिल उछाले गये। प्यार में टूटकर क्यूँ "प्रियम", रोज फिर ख़्वाब पाले गये। ©पंकज प्रियम आग दिल में