वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे एहसास हुआ कि जो सोचा करता था,क्या हो गया है हसरतें, मंसूबे जो थी,क्या हकीकत बन पाई है एक राह सुगम बनाई थी,क्या जटिल बनी है हस्ती को कांधा दिए चला था, क्या सहारा बन पाया है बहुत एहसास थे मन मे,एक एहसास ओर आया वक्त गतिशील रहा निरन्तर, मै सदैव क्यु गौण रहा । arvind bhanwra #Waqt निरन्तर गतिशील