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ताज़्जुब न कर ऐ दिल यहाँ हर रिश्ते में गर्ज है।। यह

ताज़्जुब न कर ऐ दिल यहाँ हर रिश्ते में गर्ज है।।
यहां कोई नहीं अपना हर खून हो चुका पानी है।। हम मनुष्यों का स्वभाव है कि हमें अपने शरीर की खरोंच भी ख़ंजर का ज़ख़्म लगती है। दूसरों का दुख हमें उतनी ही प्रभावित करना चाहिए जोकि नहीं करता। 

।।। शब्दार्थ 👇👇👇।।। 


ज़र्रा = कण
ताज़्जुब न कर ऐ दिल यहाँ हर रिश्ते में गर्ज है।।
यहां कोई नहीं अपना हर खून हो चुका पानी है।। हम मनुष्यों का स्वभाव है कि हमें अपने शरीर की खरोंच भी ख़ंजर का ज़ख़्म लगती है। दूसरों का दुख हमें उतनी ही प्रभावित करना चाहिए जोकि नहीं करता। 

।।। शब्दार्थ 👇👇👇।।। 


ज़र्रा = कण