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मैं उन्हें दोस्त समझ बैठी थी.... जिसे मेरी खामोशी

मैं उन्हें दोस्त समझ बैठी थी....
जिसे मेरी खामोशी नहीं अखरी 
जिसे मेरा ख्याल नहीं आया 
जब रूठी रही मैं 
तो वो मुझे बुलाने नहीं आया 
मैं उन्हें दोस्त समझ बैठी थी...
वो जो छोटी सी बात झगड़ बैठे 
जिन्हें रिश्ते का ख्याल नहीं आया 
उन्होंने मेरे जज्बातों का ताना 
मेरे गालों पर दें मारा 
मैं उन्हें दोस्त समझ बैठी थी....
वो जो मेरी तकलीफों में मिलने तो आया 
पर कहने पर आया 
रंग भेद का ताना उसने मेरे मुंह पर मल डाला 
मैं खड़ी रही थी जिसके लिए हर वक्त पर,
वो किसी और के हिस्से लड़ने मुझ से आया 
मैं उन्हें दोस्त समझ बैठी थी....
वो जो किसी के लिए मुझे रोता छोड़ गया
जब जरूरत थी उसकी मुझे 
वो अपने लिए मुझे अकेला छोड़ गया
मोड़ा जिसने मुंह मेरे हालात पर,
उन नाम के अपनों से मैंने अब मुंह मोड़ लिया
मैं उन्हें दोस्त समझ बैठी थी.....

©Richa Gupta bhor
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