चल पड़ी थी उस राह पे तब, जब सफर बस तू ही था। हमसफर तेरी चाह में थी, बस बेखबर अब तू ये था।। भूल के इस रीति जग की, मैं प्रीति निभाने चल पड़ी थी। खाई पथों में कई ठोकरें , पर मंजिल झुकाती मैं चली थी।। थे सवालों के वो मंजर, जिनसे मन भयभीत था, तू मिलेगा या बगावत, ये जुनून- ए- इश्क था।।। हमसफर तेरी राह में थी बस बेखबर अब तू ये था।।। Hamsafar 💜