क्यो ना प्रेम को सौंदर्य,,,सौंदर्य से समर्पण,,,
समर्पण से प्रेम किया जाए,,,,
क्यो ना प्रकृति के अनुरूप चला जाए,,,स्वता भाव से जो बह रहा है उसमें बहा जाए,,,,
चरम एहसासों से हृदय को पोषित किया जाए,,,
क्यों ना पाप और पुण्य के चक्रव्यूह दुर पवित्र भावना को समझा जाए,,,,,
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