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प्रेम बहता है स्वच्छंद भाव से ईश्वर के अनुरूप,,,,

प्रेम बहता है स्वच्छंद भाव से ईश्वर के अनुरूप,,,,
स्वच्छ निर्मल पवित्र रस इंद्रियों को पोषित करता है,,,
प्रेम वो सौंदर्य है जो ईश्वर के चरम एहसासों से भर देता है,,,
हृदय में पवित्र भावनाओं का स्राव बहता है,,
प्रेम में समर्पण,,समर्पण में सुंदरता प्रकट होती है,,
प्रेम वासना में जाते-जाते कुरूपता में ढल जाता है,,,
ग्लानि भावों से भर देता है हृदय को,,, क्यो ना प्रेम को सौंदर्य,,,सौंदर्य से समर्पण,,,
समर्पण से प्रेम किया जाए,,,,

क्यो ना प्रकृति के अनुरूप चला जाए,,,स्वता भाव से जो बह रहा है उसमें बहा जाए,,,,

चरम एहसासों से हृदय को पोषित किया जाए,,,
क्यों ना पाप और पुण्य के चक्रव्यूह दुर पवित्र भावना को समझा जाए,,,,,
प्रेम बहता है स्वच्छंद भाव से ईश्वर के अनुरूप,,,,
स्वच्छ निर्मल पवित्र रस इंद्रियों को पोषित करता है,,,
प्रेम वो सौंदर्य है जो ईश्वर के चरम एहसासों से भर देता है,,,
हृदय में पवित्र भावनाओं का स्राव बहता है,,
प्रेम में समर्पण,,समर्पण में सुंदरता प्रकट होती है,,
प्रेम वासना में जाते-जाते कुरूपता में ढल जाता है,,,
ग्लानि भावों से भर देता है हृदय को,,, क्यो ना प्रेम को सौंदर्य,,,सौंदर्य से समर्पण,,,
समर्पण से प्रेम किया जाए,,,,

क्यो ना प्रकृति के अनुरूप चला जाए,,,स्वता भाव से जो बह रहा है उसमें बहा जाए,,,,

चरम एहसासों से हृदय को पोषित किया जाए,,,
क्यों ना पाप और पुण्य के चक्रव्यूह दुर पवित्र भावना को समझा जाए,,,,,
vandana6771

Vandana

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