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आँखों से ओझल हो गया टूटा हुआ कोई तारा था, उम्मीद

आँखों से ओझल हो गया  टूटा हुआ कोई तारा था,  उम्मीद तो बहुत थीं तुझसे लेकिन तू तो समंदर सा किनारा था दो पल ही जी सकता हूं तेरे संग क्यू कि हर नदियों को मिलना किसको गवारा था। विनोद कुमार गिरि
आँखों से ओझल हो गया  टूटा हुआ कोई तारा था,  उम्मीद तो बहुत थीं तुझसे लेकिन तू तो समंदर सा किनारा था दो पल ही जी सकता हूं तेरे संग क्यू कि हर नदियों को मिलना किसको गवारा था। विनोद कुमार गिरि