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पल्लव की डायरी विप्पत्तियां की चादर है कभी पिघलती

पल्लव की डायरी
विप्पत्तियां की चादर है
कभी पिघलती ही नही है
चुनौती इतनी है जीवन मे
अधरों पर खुशिया टिकती नही है
मौजो ने अपने स्तर तय कर रखे है
गरीबो का दिल छूती भी नही है
संघर्ष उसका इतना बड़ा बना दिया है
रोजी रोटी के लिये कोई भी मौसम हो
जुड़ने के लिये कोई छुट्टी और सैर नसीब होती नही है
पेट की आग हर दम बेचैन करती
कीमत उसे अपनी खुद की होती नही है
फरेब की दुनियाँ जालिम हो रही है
चंद लोगो की ख्वाहिशें जिंदा रखने के लिये
बड़ी आबादी बोझ तले घुट रही है
                                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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