Nojoto: Largest Storytelling Platform

शहर पहुँचा ख्वाबों के, यहाँ भी बेघर रहा हूँ मैं। ख

शहर पहुँचा ख्वाबों के, यहाँ भी बेघर रहा हूँ मैं।
खा खा कर ठोकरें, देखो सँवर भी रहा हूँ मैं ।

यारी भी की थी राहों से, शिकवे मुकद्दर से क्या करता।
मंजिल नहीं बना तो क्या, अधूरा सफ़र बन रहा हूँ मैं ।

थी इब्तेदा सफ़र की जब, था साथ सभी का हमेशा के लिए ।
अब खाली जेबों में ही देखों, हाथों को भर रहा हूँ मैं ।

वक़्त लगता है अक्सर ताज सी इमारतें बनने में ।
दो दिन में जो बने, ऐसा कमरा थोड़ी ही बना रहा हूँ मैं । #dastooreishq #abhivyanjana
#piyush #piyushsharma #shayari
#ghazal
शहर पहुँचा ख्वाबों के, यहाँ भी बेघर रहा हूँ मैं।
खा खा कर ठोकरें, देखो सँवर भी रहा हूँ मैं ।

यारी भी की थी राहों से, शिकवे मुकद्दर से क्या करता।
मंजिल नहीं बना तो क्या, अधूरा सफ़र बन रहा हूँ मैं ।

थी इब्तेदा सफ़र की जब, था साथ सभी का हमेशा के लिए ।
अब खाली जेबों में ही देखों, हाथों को भर रहा हूँ मैं ।

वक़्त लगता है अक्सर ताज सी इमारतें बनने में ।
दो दिन में जो बने, ऐसा कमरा थोड़ी ही बना रहा हूँ मैं । #dastooreishq #abhivyanjana
#piyush #piyushsharma #shayari
#ghazal