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तपते ज़िगर ,प्यासी रूह की तलब, उमड़ते-घुमड़ते काले मे

तपते ज़िगर ,प्यासी रूह की तलब,
उमड़ते-घुमड़ते काले मेघ का सबब,
निष्प्राण हो चुके तरुवर की संजीवनी,
वसुधा के वक्ष की सुधोपम नीर,
और उम्मीदों की निगाहों से अम्बर की ओर निहारते जीवों का,
मन्नत का तरल ही तो है यह बारिश,
बदरा का धरा के लिए वियोग का,
चातक के मिलन संयोग का,
नाकामी के ज्वलन्त घुट पी कर,
निर्वाक अश्रु रूपी गरल ही तो है ,
यह बारिश।।

©Akshay Shivam
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Akshay Shivam

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