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तेरे दर से उठकर... तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मै

तेरे दर से उठकर...


तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मैं;

चलूँ दो कदम और ठहर जाऊं मैं;

अगर तू ख़फा हो तो परवा नहीं;

तेरा गम ख़फा हो तो मर जाऊं मैं;

तब्बसुम ने इतना डसा है मुझे;

कली मुस्कुराए तो डर जाऊं मैं;

सम्भाले तो हूँ खुदको, तुझ बिन मगर; 
जो छू ले कोई तो बिखर जाऊं मैं। #OpenPoetry
तेरे दर से उठकर...


तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मैं;

चलूँ दो कदम और ठहर जाऊं मैं;

अगर तू ख़फा हो तो परवा नहीं;

तेरा गम ख़फा हो तो मर जाऊं मैं;

तब्बसुम ने इतना डसा है मुझे;

कली मुस्कुराए तो डर जाऊं मैं;

सम्भाले तो हूँ खुदको, तुझ बिन मगर; 
जो छू ले कोई तो बिखर जाऊं मैं। #OpenPoetry
bhawyadb8649

Bhawya

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