खुद को आईने में देखे हमको इक मुद्दत हो गई है अब तो सच कहने वाले हर चेहरे से नफरत हो गई है मेरी आँखों से बहते दरिया को देख कहता हैं ये जमाना लगता है इसको किसी दौलतवाली से मोहब्बत हो गई है अपनी मजबूरियाँ उनका बहाना था मुझसे दूर जाने का सच तो ये है उनको मेरी जहालत से अदावत हो गई है मुझ फकीर को कहाँ पता था कि दौलत वाले मोहब्बत अमीरों से ही करते हैं मुझको बस उनके सादगी भरे चेहरे से उल्फत हो गई है अब वो आए ना आए ये मर्जी है उनकी हमारा क्या है हमको अब उनके इंतजार की सदा के लिए आदत हो गई है मोहब्बत-ए-जहां