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एक ही छत के नीचे रहते है दो अजनबी! वो किराएदार भी

एक ही छत के नीचे रहते है दो अजनबी!
वो किराएदार भी नही है वो राज़दार भी नही है!
दोनों ने वादा किया था ताउम्र साथ रहने का!
पर आज तक समझ ही न पाए एक दूसरे को!
एक ही छत के नीचे रहते है दो अजनबी!
वो साथ खाते है साथ सोते है और साथ रोते भी है!
वो नही करते तो कोशिश एक दूसरे को समझने की!
उनके लिए शायद जरूरी नही लगता जानना एक दूजे को!
एक ही छत के नीचे रहते है दो अजनबी!
उन्होंने डाल रखा है बीच मे एक पर्दा अपनी खामोशी का!
वो बीच का पर्दा ही रोके है भावनाओं को प्रकट होने से!
एक हवा का झोंका चाहिए हटाने को बीच का पर्दा !
एक ही छत के नीचे रहते है दो अजनबी!

©अलौकिक "आलोक"
  #नई_कविता