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फकीरी में चाय, गांव की मौसी का घर, चारपाई पर पड़े

फकीरी में चाय,
गांव की मौसी का घर,
चारपाई पर पड़े सुख रहा आचार,
गौरैया की पुकार,
धूप में मिट्टी से धुली की के बर्तन,
लकड़ी की चूल्हे में भूना आलू,
फिर वो आंगन पर बैठे हमारे तुम्हारे बेतुकी चों चों,
रात कब आई और गई पता नहीं चला,
अभी तो वो बस भी नहीं पहुंची जो शहर से चिट्ठी लाएगा,
गांव के तालाब पर मिलो,
फिर से धो लेते हैं मिट्टी से सने और सुमरते हैं तुलसी का मानस! तुम अा जाना!
फकीरी में चाय,
गांव की मौसी का घर,
चारपाई पर पड़े सुख रहा आचार,
गौरैया की पुकार,
धूप में मिट्टी से धुली की के बर्तन,
लकड़ी की चूल्हे में भूना आलू,
फिर वो आंगन पर बैठे हमारे तुम्हारे बेतुकी चों चों,
रात कब आई और गई पता नहीं चला,
अभी तो वो बस भी नहीं पहुंची जो शहर से चिट्ठी लाएगा,
गांव के तालाब पर मिलो,
फिर से धो लेते हैं मिट्टी से सने और सुमरते हैं तुलसी का मानस! तुम अा जाना!

तुम अा जाना!