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एक ऐसी आशा जो खंडित होते होते बचने की अपनी शक्ति न

एक ऐसी आशा जो खंडित होते होते बचने की अपनी शक्ति नहीं खोती।
 नदी की धार अधिक तो है लेकिन उसकी ठंडी हवा आती रही है। 
ऐसी तेज़ धार में जर्जर नाव भी आने वाली लहरों से मुठभेड़ करने की कोशिश कर रही है। 
एक चिंगारी कहीं से मिल जाये तो इस दिए में तेल से भीगी हुई बत्ती जल उठेगी। 
खण्डहर सी उदास और जंगली फूल की तरह आदमी की गूंगी पीर गाती है। हिम्मत नहीं हारता । 
एक चादर से ढकी सड़क भोर तक चली जाती है। 
शांत नदी कभी-कभी पथ्थरों से ओट में कुछ कह लेती है।
 कोई प्राप्ति न होते हुए भी कोई मलाल नहीं । 
इस बात का गर्व है की आकाश की तरह चौड़ी छाती तो है।

#दुष्यंत कुमार

©PULKIT JAIS आशा और विश्वास!

#WritingForYou
एक ऐसी आशा जो खंडित होते होते बचने की अपनी शक्ति नहीं खोती।
 नदी की धार अधिक तो है लेकिन उसकी ठंडी हवा आती रही है। 
ऐसी तेज़ धार में जर्जर नाव भी आने वाली लहरों से मुठभेड़ करने की कोशिश कर रही है। 
एक चिंगारी कहीं से मिल जाये तो इस दिए में तेल से भीगी हुई बत्ती जल उठेगी। 
खण्डहर सी उदास और जंगली फूल की तरह आदमी की गूंगी पीर गाती है। हिम्मत नहीं हारता । 
एक चादर से ढकी सड़क भोर तक चली जाती है। 
शांत नदी कभी-कभी पथ्थरों से ओट में कुछ कह लेती है।
 कोई प्राप्ति न होते हुए भी कोई मलाल नहीं । 
इस बात का गर्व है की आकाश की तरह चौड़ी छाती तो है।

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