*विश्वासघात दिवस* न धर्म से , न भाषा से , न डरते हम किसी जात से ! डर लगता है साहब हमको तेरी झूठी बात से !! गोली-बन्दुक से डर नहीं लगता ,न डरते हम संवाद से ! खेलो न मेरी आवरू से , न खेलो मेरी जज्वात से !! डर लगता है साहब तेरी रोज के *विश्वासघात* से -2 गर्मी से हमें डर नहीं लगता , न तेज हवा रफ़्तार से ! काली रात के ठंढी से न , घोर घनी बरसात से !! मौसम की तरह बदलते हो तुम ,पता न किस रफ़्तार से !! डर लगता है साहेब तेरी रोज की *विश्वासघात* से -2 *संतोष 'सागर'* सहायक रेल चालक , गोमो (धनबाद ) *विश्वासघात दिवस* न धर्म से , न भाषा से , न डरते हम किसी जात से ! डर लगता है साहब हमको तेरी झूठी बात से !! गोली - बन्दुक से डर नहीं लगता , न डरते हम संवाद से ! खेलो न मेरी आवरू से , न खेलो मेरी जज्वात से !! डर लगता है साहब तेरी रोज के *विश्वासघात* से -2 गर्मी से हमें डर नहीं लगता , न तेज हवा रफ़्तार से ! काली रात के ठंढी से न , घोर घनी बरसात से !!