नफरतों के बाज़ार में , मोहब्बत बेपनाह मिल रही है । मंजिल तो दिखती नहीं, हमें तो राह पे राह मिल रही है। पता नहीं लोगों को हम, कैसे एक कवि लगने लगे । हमने तो उनकी बातें उन्ही को सुनाई , और इसी में वाह-वाह मिल रही है।